कर्म
कर्म क्या हैं, कर्म कितने होते है,
इनका फल क्या होता है
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कर्म की परिभाषा क्या होती है
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मनुष्य जीवन जो भी कार्य करता है, वह कार्य ही उस जीवन के कर्म बन जाते है | कर्म का जन्म मनुष्य के जीवन मैं तब होता है जब वह जन्म के बाद दो बड़ी शक्तियों एक मित्र शक्ति/विचार (positive power) और दुश्मन शक्ति/विचार (Negative Power) के बीच फँस जाता है, और किसी एक शक्ति का चुनाव करके और उस के अनुसार कार्य करता है |
अगर भगवान (God) यह दो शक्तिया ना बनाता तो शायद मनुष्य के जीवन का कोई वजूद/अर्थ ना होता, क्योंकि जीवन रूपी खिलाड़ी को पता ही नहीं चलाना था की वह क्या करे और कहा जाये, और वह इस संसार मैं क्या करने आया है |
जब मनुष्य जीवन का जन्म हुआ तो उसके सामने दो शक्तिया खड़ी थी एक मित्र शक्ति/विचार (Positive power/thought) और दुश्मन शक्ति/विचार (negative power/thought), तीसरी कोई शक्ति/विचार और कोई रास्ता भी नहीं था | दोनों शक्तियों ने अपने – अपने तरीके से मनुष्य जीवन को भ्रमित करना शुरू किया और कई तरह के परलोभन और लालच दिखा कर अपने अनुसार कार्य करवाना चाहा | मनुष्य जीवन भी भ्रामित होता चला गया ( जैसे की आजकल राजनेता लोग मतदान के समय जनता को तरह – तरह के परलोभन और लालच देते है ) और मनुष्य ने भी अपना कार्य किसी एक शक्ति के अनुसार करना शुरू कर देता है, वस...... यही से मनुष्य जीवन के कर्मी का आरम्भ / शुरू हो जाता है, चाहे वह अच्छे हो या बुरे हो | मनुष्य को अपने कर्मी के फल का पता नहीं होता और चिंता भी नहीं करता, बह तो एक सुंदर सपनों को देखते हुऐ अपने कार्यो में लग जाता है और लगातार करता जाता है |
कर्म एक है, क्योंकि कर्म का अर्थ है कार्य करना to do, to make ( doing , making , action etc.)
जैसे की एक सिक्के के दो पहलु होते है पर सिक्का तो एक ही होता है, इसी तरह कर्म एक ही है पर मनुष्य जीवन के कार्यो ने उसको भी दो हिस्सों में कर दिया, जिसका फल मनुष्य जीवन को ही मिलता है | “जैसे हम कर्म करेंगें बैसे ही फल मिलेंगे (as you sows so as you reap) यही तो प्रकृति का नियम है “ | भगवान (God) ने मानुष जीवन को कर्म नहीं दिये, मनुष्य आज़ाद है अपने कर्म बनाने के लिया| कर्म तो केवल मनुष्य के दुबारा/अनुसार किये गये कार्यो का फल देता है, वह चाहे अच्छे हो या बुरे हो
अगर मनुष्य जीवन ने मित्र शक्ति/विचार के अनुसार कार्य किया या कहो की मित्र शक्ति/विचार (Positive energy/power)की राह पर चला तो वह पुण्य कर्मी का फल लेने बाला होगा | अगर मनुष्य जीवन ने दुश्मन शक्ति/विचार (negative power/shakti) के रास्ते पर चला तो पापी कर्मी का फल भोगेगा | मनुष्य जीवन ने जन्म लिया है तो कार्य तो करने ही होगें, कार्य करेगा तो कर्म भी बनेंगे, और जैसे कार्य होंगे बैसे ही कर्मी का फल भी होगा यही सत्य/ सच है जीवन का | कर्म नहीं कहता मनुष्य को की तुम यह कार्य करो, कार्य तो मनुष्य खुद ही करता है अपनी समझ से और अपनी सुविधा से | कर्म तो मनुष्य के किये हुए कार्यो के साथ खड़ा हो जायेगा, अगर अच्छैं कार्य है तो पुण्य कर्म (punye Karam), बुरे कार्य है तो पापी कर्म (pap karam) | यहाँ कर्म दो भागों (parts) मैं बट गया है (divide) हो गया है १) पुण्य कर्म/ सुकरम (Punye Karam/ Sukaram) २) पापी कर्म/ कूकर्म (Papi karam/ Kukaram).
पुण्य कर्म/ सुकरम (Puny Karam/Sukaram)
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अच्छे कर्म कैसे मिलते है |
जब मनुष्य अपनी चेतना से सोचता है की उसके लिये कौन सा रास्ता अच्छा है और उस रस्ते पर चलता है और कार्य करता है, क्योकि कार्य तो उसे करने ही है , अपने परिबार और बच्चों के लिये जैसे पढाई (education),खाने के लिये, शादियों के लिये और ............|
अगर मनुष्य कार्य मित्र विचार/शक्ति (Positive thought/power) के साथ करता है, तो मनुष्य मै ईमानदारी का जन्म होगा , किसीको धोखा नहीं देगा, सब की इज्जत (respect) करेगा, अपने मन में किसी के लिये दुवेश/नफरत (hate) नहीं रखेगा और उसमे ऊँच/ नीच की भावना नहीं रखता होगा, अपने माँ और बाप की इज्जत करना, उनकी सेवा करना, हो सकें तो हर बजुर्ग की अपने माँ और बाप की तरह सेवा करना सबसे बड़ा पुण्ये कर्म है, यही भावनाये/कार्य पुण्ये कर्मो को जन्म देती है| यही पुण्ये कर्म (Punye Karam) ही मनुष्य को संसार मै सब से इज्जत(respect) और उसका सम्मान कराते है| भगवान भी ऐसे मनुष्य के साथ खड़ा रहता है, और मनुष्य की मेहनत का मीठ फल भी देता है, चाहे किसी भी रूप में दे | यही पुण्ये कर्म (punye karam) मनुष्य से दुखो/कष्टों को दूर रखता है | पुण्ये कर्मो वाला मनुष्य जहां भी कदम रखता ही वही कांटे फूल बन जाते हैं, और तो और मिट्टी भी सोना (Gold) बन जाता है | यही पुण्ये कर्मो की पहचान है, इन्ही को पुणे कर्मो का मीठा फल कहते है इसलिए इसी को स्वर्ग भी कहते है |
पुण्ये कर्म पाने के लिये मानुष को इस संसार के झूठे, चमकदार सपनों को त्यागना होगा, इस जिंदगी की हकीकत मै आना होगा, और मनुष्य इस संसार / धरती पर क्यों आया हैं यह जाना होगा, खुद के अंदर देखना होगा, तभी वह पुण्ये कर्मो का भागी बनेगा और उस परमपिता परमात्मा (God) का आशीर्वाद मिलेगा |
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